तलाश कर न ज़मीं आसमान से बाहर नहीं है राह कोई इस मकान से बाहर बस एक दो ही क़दम और थे सफ़र वाले थकान देख न पाई थकान से बाहर निसाब दर्जा-ब-दर्जा यूँ ही बदलता है हुआ न कोई भी इस इम्तिहान से बाहर उसी की जुस्तुजू अक्सर उदास करती है वो इक जहाँ जो है हर जहान से बाहर नमाज़ियों से कहो देखें चाँद-सूरज को निकल रहे हैं मुअज़्ज़िन अज़ान से बाहर