तल्ख़ गुज़रे कि शादमाँ गुज़रे ज़िंदगी हो तो क्यूँ गराँ गुज़रे था जहाँ मुद्दतों से सन्नाटा हम वहाँ से भी नग़्मा-ख़्वाँ गुज़रे मरहले सख़्त थे मगर हम लोग सूरत-ए-मौजा-ए-रवाँ गुज़रे मेरे ही दिल की धड़कनें होंगी तुम मिरे पास से कहाँ गुज़रे क्यूँ न ढल जाए मेरे नग़्मों में क्यूँ तिरा हुस्न राएगाँ गुज़रे चंद लम्हे ख़याल-ओ-ख़्वाब सही चंद लम्हे अनीस-ए-जाँ गुज़रे कितने ख़ामोश हादसे 'जावेद' दिल ही दिल में निहाँ निहाँ गुज़रे