तअल्लुक़ तर्क करने से मोहब्बत कम नहीं होती भड़कती है ये आतिश दिन-ब-दिन मद्धम नहीं होती निभाना आश्नाई कर के मुश्किल तो नहीं लेकिन किसी से भी मोहब्बत ना-गहाँ यक-दम नहीं होती तुम्हारी सोच पर हैं मुनहसिर रंगीनियाँ दिल की ये महफ़िल बेवफ़ाई से कभी दरहम नहीं होती उतर जाए जो पूरा इमतिहान-ओ-आज़माईश में वो चश्म-ए-दिल कभी फिर आँसुओं से नम नहीं होती ज़माना चाहे जितने रंग-ओ-रुख़ बदले हक़ीक़त में निडरता मर्द-ए-मैदाँ मोम की मरियम नहीं होती अजब दस्तूर है अबरार इस दुनिया-ए-बे-पर का शिकस्ता-रंग पत्तों पर फ़िदा शबनम नहीं होती