तअ'ल्लुक़ात की हर रस्म को सुला देगा ख़बर न थी कि वही आग को हवा देगा किसी भी ग़ैर को फ़ुर्सत कहाँ ठहरने की जो ज़ख़्म देगा मुझे मेरा आश्ना देगा इसी लिए कभी इज़हार मैं नहीं करता वो आरज़ू को मिरी आइना दिखा देगा सुकून बिखरा हुआ देख कर जो बैठ भी जाऊँ ख़मोश झील में पत्थर कोई गिरा देगा शरर जो हौसला-ए-दिल का बन गया शो'ला गुलाब राहगुज़र पर मिरी बिछा देगा जहाँ पे चाहा है उस ने वहीं ठहर गया हूँ कहाँ क़ियाम है मेरा वही पता देगा ये वक़्त ऐसा ही ज़ालिम है 'नूर' मत पूछो मुझे ख़बर थी मिरा नक़्श तक मिटा देगा