तअ'ल्लुक़ात में यख़-बस्तगी पड़ी रहेगी कहीं ग़ुबार कहीं धुंद सी पड़ी रहेगी वो आएगा उसे देखेंगे देखते रहेंगे किताब ऐसे खुली की खुली पड़ी रहेगी पड़ा रहेगा कोई ख़्वाब एक फूल के साथ और इस के साथ इक तस्वीर भी पड़ी रहेगी कुछ एहतियात-ए-तअल्लुक़ अब इस मक़ाम पे है कि दिल में जो भी गिरह पड़ गई पड़ी रहेगी ये बर्फ़ अब के बरस भी अगर नहीं पिघली हमारे बीच पड़ी ख़ामुशी पड़ी रहेगी दरून-ए-ज़ात पे उड़ती रहेगी गर्द-ए-मलाल दिलों की डोर यूँ उलझी हुई पड़ी रहेगी शिकन पड़ी है जबीं पर तो नोच डाल इसे वगर्ना देर तलक ये पड़ी पड़ी रहेगी हमीं न होंगे अगर कल तो हुस्न-ए-दाद-तलब चमक-दमक ये तिरी दिलकशी पड़ी रहेगी चला भी जाएगा उठ कर तू मेरे बिस्तर पर शिकन शिकन मिरी अफ़्सुर्दगी पड़ी रहेगी पड़े रहेंगे तिरे दर पे ख़स्ता-जाँ तेरे हमारे बाद भी दरमांदगी पड़ी रहेगी