तमाम ऐश-ओ-तरब हैं फ़क़त उसी के लिए ख़िरद से काम लिया जिस ने ज़िंदगी के लिए ये इर्तिक़ा-ए-ख़िरद है कि इंतिहा-ए-जुनूँ जुनूँ-नवाज़ बने हैं जो आगही के लिए चमक रहे हैं जो क़तरात-ए-ख़ूँ सर-ए-मिज़्गाँ ये एहतिमाम-ए-चराग़ाँ है आप ही के लिए जहाँ गुमान भी हो आप के गुज़रने का वहीं झुका दिया सर मैं ने बंदगी के लिए मह-ओ-नुजूम पे डाली गई कमंद-ए-शुऊ'र ये इल्तिज़ाम है दो दिन की ज़िंदगी के लिए ये जश्न-ए-ऐश-ओ-तरब आप ही के दम से है हुए हैं आप तो पैदा ही दिलबरी के लिए लहू से अपने जला कर चराग़ आँखों में हरीम-ए-दिल को सजाया है आप ही के लिए उसी के वास्ते चमके हैं कौकब-ए-तक़दीर चराग़-ए-होश भी रौशन है आदमी के लिए समझ सका न अनल-हक़ के राज़ को 'ख़ावर' ये एक खेल था इरफ़ाँ के मुंतही के लिए