रात क्यों मुख़्तसर नहीं होती हिज्र की क्यों सहर नहीं होती जो गुज़रती है हिज्र में मुझ पर क्या उन्हें कुछ ख़बर नहीं होती ज़िंदगी क्यों वबाल है यारो चैन से क्यों बसर नहीं होती हसरतें दिल में हैं बहुत लेकिन कोई भी बार-वर नहीं होती लाग से जो पड़े किसी शय पर वो नज़र बे-असर नहीं होती कब किया है उसे नज़र-अंदाज़ उस को ये क्यों ख़बर नहीं होती कुछ दुआ में असर न हो तो न हो बद-दुआ' बे-असर नहीं होती ख़ालिक़-ए-जुज़्व-ओ-कुल इधर भी देख क्यों तवज्जोह इधर नहीं होती तुम से आशुफ़्ता-सर की ऐ 'ख़ावर' बात कुछ मो'तबर नहीं होती