तमाम दर्द हो दिल और नज़र गिला न करे किसी ग़रीब पे यूँ आ बने ख़ुदा न करे हज़ार दर्द दे और एक की दवा न करे जो कुछ किसी की निगाह-ए-करिश्मा-ज़ा न करे वो दिल की इक न सुने दिल मिरा कहा न करे पड़े किसी से किसी की ग़रज़ ख़ुदा न करे बिगड़ के बैठे हैं त्योरी चढ़ी है बरहम हैं कि कोई अर्ज़-ए-तमन्ना का हौसला न करे न बन-सँवर के हर इक बार आइना देखो लगे तुम्हीं को तुम्हारी नज़र ख़ुदा न करे शब-ए-फ़िराक़ के तारे ये कह के डूब गए किसी का कोई मोहब्बत में आसरा न करे जुनून-ए-इश्क़ की मासूम हसरतें तौबा वो मिन्नतें करें दिल अर्ज़-ए-मुद्दआ न करे दिल और तेरी मोहब्बत के दुख अरे तौबा ये ग़म नसीब हो दुश्मन को भी ख़ुदा न करे निगाह-ए-नाज़ हो जब आप सिलसिला-जुम्बाँ तो कौन होगा जो तज्दीद-ए-मुद्दआ' न करे तुम्हीं कहो कि जो तुम आस इस तरह तोड़ो तो किस उमीद पे दिल तर्क-ए-मुद्दआ न करे किसी के वा'दा-ए-फ़र्दा की शर्म रह जाए ख़ुदा करे कि मिरी ज़िंदगी वफ़ा न करे दिल और पहली मोहब्बत की चोट अरे तौबा ग़म और ताज़ा जुदाई का ग़म ख़ुदा न करे 'सरोश' कितना हसीं है ये मस्लक-ए-‘हाफ़िज़’ गुनाह लाख करे एक दिल बुरा न करे