किसी सूरत न चैन आए तो क्या हो तसल्ली और तड़पाए तो क्या हो अदावत तो अदावत है बहर-हाल मोहब्बत भी न रास आए तो क्या हो वो समझाएँ दिलासा दें मनाएँ मगर दिल फिर भी घबराए तो क्या हो ये माना रोक दें हम चश्म-ए-तर को तबस्सुम ख़ून बरसाए तो क्या हो ज़बाँ को काट डालें होंट सी लें ख़मोशी आह बन जाए तो क्या हो वो समझाते रहें और ना-मुरादी गले से बढ़ के लग जाए तो क्या हो मआ'ज़-अल्लाह ख़ुद घर के दिए से जो घर में आग लग जाए तो क्या हो कहाँ की आग और कैसा नशेमन जो बिजली आप जल जाए तो क्या हो ये माना इश्क़ की कुछ हद नहीं है जब उन से इश्क़ शरमाए तो क्या हो मसोसें लाख हम सीने में दिल को उन्हीं की आँख भर आए तो क्या हो ठहोके दे न यूँ ऐ चश्म-ए-साक़ी जो पैमाना छलक जाए तो क्या हो ब-सद-मुश्किल पिया जाए जो आँसू वो इन पलकों पे थर्राए तो क्या हो ये तन्हाई ये रोना चुपके चुपके कोई ऐसे में आ जाए तो क्या हो हवा से उन के दामन की बुझे दिल सबा से फूल कुम्हलाए तो क्या हो तबस्सुम उन का ले लें मेरे आँसू किरन को ओस पी जाए तो क्या हो मुसीबत हो तो कोई सब्र कर ले ख़ुशी ग़म बन के तड़पाए तो क्या हो दिल-ए-हस्सास और जोश-ए-मोहब्बत हबाब आँधी से टकराए तो क्या हो वो पहलू में 'सरोश' और ये क़यामत जो वो पहलू से उठ जाए तो क्या हो