तमाम जलना जलाना फ़साना होता हुआ चराग़ लम्बे सफ़र पर रवाना होता हुआ अजब गुदाज़ परिंदे बदन में उड़ते हुए उसे गले से लगाए ज़माना होता हुआ हरी ज़मीन सुलगने लगी तो राज़ खुला कि जल गया वो शजर शामियाना होता हुआ नज़र में ठहरी हुई एक रौशनी की लकीर उफ़ुक़ पे साया-ए-शब बे-कराना होता हुआ रिक़ाबतें मिरा ओहदा बहाल करती हुई मैं जान देने के फ़न में यगाना होता हुआ