यहाँ तकरार-ए-साअत के सिवा क्या रह गया है मुसलसल एक हालत के सिवा क्या रह गया है तुम्हें फ़ुर्सत हो दुनिया से तो हम से आ के मिलना हमारे पास फ़ुर्सत के सिवा क्या रह गया है बहुत मुमकिन है कुछ दिन में उसे हम तर्क कर दें तुम्हारा क़ुर्ब आदत के सिवा क्या रह गया है बहुत नादिम किया था हम ने इक शीरीं-सुख़न को सो अब ख़ुद पर नदामत के सिवा क्या रह गया है हमारा इश्क़ भी अब मांद है जैसे कि तुम हो तो ये सौदा रिआयत के सिवा क्या रह गया है कहाँ ले जाएँ ऐ दिल हम तिरी वुसअत-पसंदी कि अब दुनिया में वुसअत के सिवा क्या रह गया है सलामत है कोई ख़्वाहिश न कोई याद ज़िंदा बता ऐ शाम वहशत के सिवा क्या रह गया है किसी आहट में आहट के सिवा कुछ भी नहीं अब किसी सूरत में सूरत के सिवा क्या रह गया है बहुत लम्बा सफ़र तय हो चुका है ज़ेहन ओ दिल का तुम्हारा ग़म अलामत के सिवा क्या रह गया है अज़िय्यत थी मगर लज़्ज़त भी कुछ इस से सिवा थी अज़िय्यत है अज़िय्यत के सिवा क्या रह गया है हमारे दरमियाँ सारी ही बातें हो चुकी हैं सो अब इन की वज़ाहत के सिवा क्या रह गया है बजा कहते हो तुम होनी तो हो कर ही रहेगी तो होने को क़यामत के सिवा क्या रह गया है शुमार ओ बे-शुमारी के तरद्दुद से गुज़र कर मआल-ए-इश्क़-ए-वहदत के सिवा क्या रह गया है