तमाम रात मिरे साथ फिरता रहता है मैं सो भी जाऊँ तो आँखों में चलता रहता है बदन है उस का कि जैसे चिनार का मौसम वो अपनी आग में हर रात जलता रहता है मुझे कभी जो रहे धूप का सफ़र दर-पेश वो छाँव बन के मिरे साथ चलता रहता है वो पेड़ सर को झुकाए खड़ा जो रहता है वो मौसमों की बहुत मार सहता रहता है फिर इस के बा'द कहाँ जिस्म-ओ-जाँ सँभलते हैं वो मेरे हाथ में शब भर पिघलता रहता है ग़मों की रुत हो या कोई ख़ुशी का मौसम हो बदलते रहते हैं मौसम बदलता रहता है 'नदीम' उस से तअ'ल्लुक़ तो हम ने तोड़ लिया मगर ये दिल है कि अब भी मचलता रहता है