तमाम 'उम्र वो एहसान मुझ पे करता रहा मिरी ही राख से वो ज़ख़्म मेरा भरता रहा तलाश ता-ब-फ़लक जिस की ले गई मुझ को वो जब मिला तो मिरे बाल-ओ-पर कतरता रहा ज़रा सी देर का कहने को साथ था उस का तमाम 'उम्र मिरे दिल में वो उतरता रहा मैं उस की धुन में नए रास्ते पे जा निकली दयार-ए-जाँ से मिरी रोज़ जो गुज़रता रहा वो दिल जो प्यार से जीता था अब ये हाल हुआ कि जिस ने प्यार से देखा उसी से डरता रहा