तमाम उम्र किसी का सहारा मिल न सका मैं ऐसा दरिया था जिस को किनारा मिल न सका तबाहियों के मनाज़िर हर आँख रौशन थे मोहब्बतों का कहीं इस्तिआरा मिल न सका तमाम ज़ीस्त रही नज़्र-ए-आबला-पाई सफ़र के ख़त्म का हम को इशारा मिल न सका कभी जो सब के लिए बाइ'स-ए-मोहब्बत था मुझे वजूद वो ऐसा दोबारा मिल न सका खुली रही हैं हमेशा सफ़र में आँखें मिरी निगाह-ए-शौक़ को रंगीं नज़ारा मिल न सका मिरी हयात में थी जिस के लम्स की गर्मी मिरे नफ़स को फिर ऐसा शरारा मिल न सका फ़ज़ा-ए-शहर पे हर सम्त था धुआँ 'नक़वी' कहीं पे कोई भी रौशन सितारा मिल न सका