तेरी रात में गहमा-गहमी मेरी हर इक रात में चुप तेरी चुप में सब बातें हैं मेरी हर इक बात में चुप इक इक कर के सारे अपने मुझ से ऐसे दूर गए तन्हाई ने डेरा डाला फैली अंदर ज़ात में चुप जाने कैसी ये क़िस्मत है चाहूँ कुछ तो होता कुछ मैं रौनक़ को ढूँड रहा हूँ और है मेरी घात में चुप मैं ने उस से जाते जाते एक निशानी माँगी थी उस ने रोग इनायत कर के दी मुझ को सौग़ात में चुप एक नगर आबाद हुआ तो इक बस्ती वीरान हुई शहर की आब-ओ-ताब बढ़ी और फैल गई देहात में चुप अब भी बाग़ में ख़ामोशी के ज़ख़्म नुमायाँ दिखते हैं एक बड़े तूफ़ान की मानिंद आई थी बरसात में चुप