तमाशा बन गईं नज़रें जहाँ देखा जिधर देखा तिरे जलवों में गुम हो कर तुझी को जल्वा-गर देखा बस इतना तूर पर जा कर तजल्ली का असर देखा कि मूसा ने ख़ुद अपने आप को भी बे-ख़बर देखा सुकूँ मिलना कुजा तड़पा दिया बीमार-ए-हिज्राँ को अजब अंदाज़-ए-दिल-जूई तिरा ऐ चारागर देखा वो ईसा हो कि हो मंसूर या अहल-ए-वफ़ा कोई हमेशा तेरे दीवानों को हम ने दार पर देखा हुआ है जब से दिल मेरा गिरफ़्तार-ए-असीर-ए-ग़म न नाले ही रसा देखे न आहों में असर देखा न हो क्यों लाएक़-ए-सद-आफ़रीं दीवाना-ए-हस्ती उसी जानिब चला है रास्ता जो पुर-ख़तर देखा मसीहाई तुम्हारी शोहरा-ए-आफ़ाक़ है लेकिन किसी दर्द-आश्ना दिल को भी तुम ने झाँक कर देखा