उन को ग़ुरूर-ए-हुस्न मुबारक ख़ुशी के साथ मेरा जुनूँ रहेगा मेरी ज़िंदगी के साथ बज़्म-ए-तरब में रात अजब माजरा रहा था उन का इल्तिफ़ात मगर बे-रुख़ी के साथ किस को सुनाएँ किस से कहें माजरा-ए-दिल काफ़िर-नज़र ने लूट लिया सादगी के साथ दिल जानता है दिल पे जो गुज़री है दोस्तो जब मुस्कुरा दिया कोई शर्मिंदगी के साथ आमद ज़रूर आज किसी माह-वश की है ग़ुंचे चटक रहे हैं चमन में ख़ुशी के साथ या-रब ज़बाँ पे कलिमा-ए-तय्यब सदा रहे जीना इसी के साथ हो मरना इसी के साथ आई अजल तो अपने पराए जुदा हुए दुनिया में 'दर्द' कौन रहा है किसी के साथ