तमाशा गर हमेशा से पस-ए-दीवार होता है By Ghazal << ग़ुबार-ए-तंग-ज़ेहनी सूरत-... ऐ दिल-ए-दर्द-आश्ना हुस्न ... >> तमाशा गर हमेशा से पस-ए-दीवार होता है कहानी ख़ुद नहीं बनती कहानी-कार होता है मिरी हैरानियों पे मुस्कुरा के मुझ से है कहता ये दुनिया है यहाँ सब कुछ मिरी सरकार होता है Share on: