तन्हा जो किसी रात ज़रा दूर चला हूँ मैं अपने ही साए से कई बार डरा हूँ झूमर की तरह नुक़रई माथे पे सजा था काजल की तरह शरबती आँखों से बहा हूँ तुम भागते लम्हों की तरह गर्म-ए-सफ़र हो मैं एक अपाहिज की तरह घर में पड़ा हूँ तू रात के माथे पे था महताब की सूरत हाले की तरह मैं तिरे अतराफ़ रहा हूँ उभरेगा तिरी याद का ख़ुर्शीद वहीं से तन्हाई के जिस तीरा उफ़ुक़ पर मैं खड़ा हूँ