तन्हा न महर में है रुख़-ए-यार की तरह मह में तमाम उस के है रुख़्सार की तरह हैरान ऐसे नईं हुई आँखों को उस की देख नर्गिस चमन में रहती है बीमार की तरह मैं सुन के जो क़यास किया वो दहान-ए-तंग ख़ंदाँ तो है पे ख़ंदा-ए-सोफ़ार की तरह सीना-सिपर हूँ बुल-हवसाँ कब कि यार के पैवस्ता अबरू लड़ते हैं तलवार की तरह रखियो हज़र ऐ दिल कि मुझे आज बे-तरह आती नज़र है शोख़ दिल-आज़ार की तरह अग़्यार उस की बज़्म में हैं और दर पर आह हम ही पड़े रहेंगे गुनहगार की तरह कहते थे क़ैस-ओ-वामिक़-ओ-फ़र्हाद वाह-वा कोई आशिक़ी करे तो 'जहाँदार' की तरह