मालूम ही नहीं कि मुझे क्या बला हुआ कुछ देखते ही तुझ को ये दिल मुब्तला हुआ गर्मी-ए-बज़्म आज है कुछ हद सेती ज़ियाद दीवार पीछे कोई न हो दिल जला हुआ तस्कीं हुई उसे जो गया बे-क़रार वाँ कूचा तिरा कहाँ हुआ दारुश्शिफ़ा हुआ बोसे के माँगने के सिवा और कुछ बता तक़्सीर हम ने क्या की जो इतना ख़फ़ा हुआ लगते ही ठेस फोड़े की मानिंद बह चला क्या कहिए आह दिल न हुआ आबला हुआ गुल दिल-फ़िगार ओ लाला हुआ ग़म से दाग़दार जैसे कि तेरे हाथों पे रंग-ए-हिना हुआ दौलत से दाग़-ए-इश्क़ के सीना मिरा तमाम आ देख मिस्ल-ए-तख़्ता-ए-गुल ख़ुश-फ़ज़ा हुआ उस की गली में देखा 'जहाँदार' के तईं मानिंद-ए-नक़्श-ए-पा था सर-ए-रह पड़ा हुआ