तन्हाइयों में क्या कहूँ क्या याद आ गया अफ़्साना एक भूला हुआ याद आ गया आसाँ समझ के मंज़िल-ए-जानाँ पे हो लिए वो मुश्किलें पड़ी कि ख़ुदा याद आ गया समझा था मैं कि दिल में वो अब महव हो चुका पहले से भी मगर वो सिवा याद आ गया दिल ने फ़रेब इश्क़ में खाए हैं बार बार हर बार दिल को अहद-ए-वफ़ा याद आ गया मेरा सर-ए-ग़ुरूर नदामत से झुक गया उस का करम जो मुझ को ज़रा याद आ गया गुमनाम था 'हबीब' और गुमनाम चल दिया उस का मगर वो सिद्क़-ओ-सफ़ा याद आ गया