तपता सूरज शाम को ढल जाएगा वक़्त कैसा ही पड़े टल जाएगा आ गया है रास वीराना उसे लौट के घर कैसे पागल जाएगा झूमता लहराता ललचाता चला क्या पता किस देस बादल जाएगा फूँकने से क़ब्ल हम-साए का घर ये न सोचा अपना घर जल जाएगा 'फ़ैज़ी' कितने बा-वफ़ा होते हैं दोस्त वक़्त पड़ते ही पता चल जाएगा