तपती हुई राहों पे फिराया मुझे दिन-भर यूँ तेरे तसव्वुर ने सताया मुझे दिन-भर दिल में वो कसक छोड़ गया सुब्ह का तारा इक लम्हा भी आराम न आया मुझे दिन-भर वीरान बयाबाँ में कभी उजड़े घरों में फिरता रहा ले कर तिरा साया मुझे दिन-भर देती रही ये चाँदनी शब-भर मुझे आवाज़ सूरज ने भी रह रह के बुलाया मुझे दिन-भर हर सम्त भरे शहर थे क्या जानिए फिर भी तन्हाई के एहसास ने खाया मुझे दिन-भर लहजे में घनी छाँव के पत्तों की ज़बाँ में पेड़ों ने तिरा हाल सुनाया मुझे दिन-भर इक पल में ही बतला गईं दम तोड़ती किरनें वो राज़ जो ऐ 'शाम' न पाया मुझे दिन-भर