ये वहशत यूँही बे-मा'नी नहीं है कि साथ उस की निगहबानी नहीं है उसे चाहा था जिस शिद्दत से मैं ने वो बिछड़ा है तो हैरानी नहीं है समुंदर है मिरी पलकों के नीचे वो कहता है यहाँ पानी नहीं है मिरी वहशत से है आबाद सहरा मिरी राहों में वीरानी नहीं है क़यामत आई थी चेहरा बदल कर मुकम्मल तू ने पहचानी नहीं है मुसलसल पढ़ रही हूँ ज़ीस्त तुझ को फ़क़त औराक़-गर्दानी नहीं है तिरी यादें मिरा रख़्त-ए-सफ़र हैं सफ़र में अब परेशानी नहीं है सँभल कर ख़र्च कर आँखों से 'तारा' सफ़र लम्बा है और पानी नहीं है