औज-ए-मक़ाम-ए-दोस्त पे अपना गुज़र कहाँ शायान-ए-सिद्राह ताइर-ए-बे-बाल-ओ-पर कहाँ तू है ख़याल में तो है आराइश-ए-ख़याल तू ही न हो नज़र में तो ज़ौक़-ए-नज़र कहाँ देखो जिसे वो मस्त-ए-मय-ए-किबर-ओ-नाज़ है दुनिया बहुत ख़राब है जाएँ मगर कहाँ है इब्तदा-ए-शाम से ज़ुल्मात का सफ़र होती है देखिए शब-ए-ग़म की सहर कहाँ तक़दीर में है उस की फ़िशार-ए-लहद वही तदबीर से उड़ा भी तो पहुँचा बशर कहाँ इस बे-ख़ुदी में किस को है परवा मआल की मौजूद मुब्तदा ही न हो तो ख़बर कहाँ 'महरूम' क्या ही ख़ूब है 'हाली' की वो ग़ज़ल तुझ से जहाँ में लाख सही तू मगर कहाँ