तारा ओझल हो जाता है ख़्वाब मुकम्मल हो जाता है लड़की आती है साहिल पर दरिया पागल हो जाता है रंग बदन में आ जाते हैं चेहरा जल-थल हो जाता है अक्सर तो आधे ही दिन में बाग़ मुक़फ़्फ़ल हो जाता है दस रातों के चिल्ले में ही चाँद मुकम्मल हो जाता है चौदहवीं शब तक आते आते लड़का पागल हो जाता है नींद अगर हड़ताल करे तो ख़्वाब मोअ'त्तल हो जाता है खिड़की का वो भारी पर्दा हिज्र में मलमल हो जाता है हो जाता है इश्क़ हमें भी और मुसलसल हो जाता है