तू जहाँ है वहाँ सँभलता है वर्ना ये दिल कहाँ सँभलता है पाँव धरता हूँ फ़र्श-ए-इम्काँ पर आगे सय्यारगाँ सँभलता है कौन है ज़ेर-ए-दाम सफ़-आरा नोक-ए-मिज़्गाँ जो याँ सँभलता है हिज्र आता है तो चराग़ों में अश्क सा इक धुआँ सँभलता है तब ख़ुशी भी कहाँ सँभलती थी अब ये ग़म भी कहाँ सँभलता है वो ग़ज़ल में अगर मुख़ातब हो हम सा इक मद्ह-ख़्वाँ सँभलता है वो सितारा 'नफ़ीस' बाँहों को जान कर आसमाँ सँभलता है