तारीकियों का हम थे हदफ़ देखते रहे सय्यारे सब हमारी तरफ़ देखते रहे टुकड़े हमारे दिल के पड़े थे यहाँ वहाँ था पत्थरों से जिन को शग़फ़ देखते रहे बरसी थी एक ग़म की घटा इस दयार में चेहरों का धुल रहा था कलफ़ देखते रहे मोती मिले न ख़्वाब की परछाइयाँ मिलीं आँखों के खोल खोल सदफ़ देखते रहे बुझती हुई सी एक शबीह ज़ेहन में लिए मिटती हुई सितारों की सफ़ देखते रहे सपने तलाश करते रहे ज़िंदगी में हम इक रेत की नदी में सदफ़ देखते रहे गोया था एक आलम का दरिया चढ़ा हुआ 'शाहिद' सिफ़़ात-ए-शाह-ए-नजफ़ देखते रहे