तर्क ख़्वाहिश-ए-ज़र कर कीमिया-गरी ये है दिल में रख ख़याल-ए-दोस्त शीशा-ओ-परी ये है देख हो गई नर्गिस बाग़ में तुझे हैराँ शोख़-चश्म जादूगर तेरी साहिरी ये है ज़ुल्फ़ तेरी अफ़्सूँ-गर चश्म तेरी पुर-जादू वो है सेहर-ए-बंगाला सेहर-ए-सामरी ये है मेरे आह भरने पर शब को तू जो हँसता है वो अजब हवाई है ज़ोर-ए-फुलझड़ी ये है साल तब थे पल जैसे आन अब क़रन सी है वस्ल के बरस वो थे हिज्र की घड़ी ये है माह-रू के कानों में गोश्वारे रख़्शाँ हैं देख 'इश्क़' वो ज़ोहरा और मुश्तरी ये है