तासीर जज़्ब मस्तों की हर हर ग़ज़ल में है ए'जाज़ बड़ में है तो करामत ज़टल में है दिल में जो अपने यार है तो दिल बग़ल में है फिर क्यूँ है ग़म कि साहब-ए-ख़ाना महल में है कितना ग़ुरूर है तुम्हें हुस्न-ओ-जमाल पर गो याद-ए-यार-ए-हुस्न तुम्हारे अमल में है है याद दिल में पंजा-ए-रंगीन-ए-यार की मेहंदी के चोर का गुज़र अपने महल में है बद-तर ख़िज़ाँ से है हमें इस बाग़ की बहार बोई निफ़ाक़ फूल में ही ज़हर फल में है लेते हैं बोसे उन लब-ओ-गेसू के रात-दिन मुल्क-ए-यमन से ताख़तन अपने अमल में है मुनइ'म ये कार-ख़ाने हैं दुनिया के कर न फ़िक्र कोई है झोंपड़े में तो कोई महल में है जो बन गया वो पेच मगर उन के हैं वही रस्सी का बल हुज़ूर की ज़ुल्फ़ों के बल में है पहलू में मुझ हज़ीं के टपकता है रात-दिन यारब ये दिल है या कोई फोड़ा बग़ल में है इतना लज़ीज़ बाग़-ए-जहाँ में समर है कौन जो ज़ाइक़ा निहाल-ए-तमन्ना के फल में है हसरत है हम भी कहते किसी दिन ये ऐ फ़लक ऐ दिल मुबारक आज तो दिलबर बग़ल में है दुश्नाम दे के बोसे ये कह कह के देते हैं इनआ'म गालियों के ये नेमुल-बदल में है लाया है रंग फिर गुल-ए-दाग़-ए-जुनूँ मिरा शायद नुज़ूल-ए-नय्यर-ए-आज़म हमल में है मुझ रिंद-ए-बाद-कश को ये जो ख़ौफ़-ए-मोहतसिब दिल की तरह छुपी हुई बोतल बग़ल में है बहर-ए-सरश्क दीदा-ए-दिल में है मौजज़न देखो तिलिस्म-ए-हुस्न कि दरिया कँवल में है ऐ मय-कशो तुम्हारी भी दावत करेंगे हम उर्स-ए-जनाब-ए-पीर-ए-मुग़ाँ आज-कल में है सानेअ' ने वो दहन न बनाया न कुछ लिखा ख़ाली जगह नविश्ता-ए-रोज़-ए-अज़ल में है ख़त भी दिया तो क़ासिद-ए-ग़फ़लत-शिआ'र को नामा मिरा बँधा हुआ बाज़ू-ए-शल में है दस्त-ए-जुनूँ ने फाड़ के फेंका इधर-उधर दामन अबद में है तो गरेबाँ अज़ल में है अश्कों के बदले ख़ून के क़तरे टपकते हैं बत्ती हमारे ज़ख़्म की रौशन कँवल में है दिल फुक रहा है गरचे हम आग़ोश है वो गुल पहलू में मेरे ख़ुल्द है दोज़ख़ बग़ल में है बीमार-ए-इश्क़ कहते हैं दारुश्शिफ़ा उसे ऐसी ही जो हसीन फ़रंगी-महल में है लिखना था जो कुछ आप को पहले ही लिख दिया हाल-ए-अबद भी दफ़्तर-ए-रोज़-ए-अज़ल में है पहलू में दिल हमारे है ज़ेब-ए-कनार-ए-यार आग़ोश में है दोस्त तो दुश्मन बग़ल में है वा'दा किया था आज सो फिर कल पे टल गया आख़िर हमारी मौत इसी आज-कल में है लपका पड़ा है हुस्न-परस्ती का किस क़दर जब देखिए 'क़लक़' को फ़रंगी-महल में है