तस्ख़ीर सब नुजूम-ओ-मह-ओ-कहकशाँ हुए मुझ को था वो जुनूँ कि निगूँ दो-जहाँ हुए मैं ज़ीस्त के सफ़र में अकेली जो चल पड़ी अज़्म-ओ-जुनूँ-ओ-शौक़ मिरे कारवाँ हुए दरिया तो एक पल में समुंदर से जा मिला आँसू ठिठक के आँख में इक दास्ताँ हुए नश्शे में तख़्त-ओ-ताज के कल तक जो चूर थे सच है लहद में आज वही बे-निशाँ हुए जिन पे ब-सद-नियाज़ झुका दी थी ये जबीं 'रेशम' नुक़ूश-ए-पा वो मिरे आस्ताँ हुए