तस्वीर तिरी ऐ जान-ए-जहाँ सीने से लगाए फिरता हूँ है अक्स फ़रोज़ाँ ख़्वाब सा कुछ पलकों पे सजाए फिरता हूँ आती है हलाली लुक़्मों से जिन जिन पे ग़ज़ब की ताबानी उन रौशन रौशन चेहरों के मैं साए साए फिरता हूँ तस्बीह के दाने की सूरत मैं विर्द के रौशन मोती सा तदबीर के ज़र्रीं हाथों में तक़दीर फिराए फिरता हूँ वसवास मिरी तीनत ही नहीं और यास मिरी फ़ितरत ही नहीं उम्मीद की हल्की ज्योति को आँखों में जलाए फिरता हूँ है मंज़िल-ए-हक़ फ़िरदौस 'ज़फ़र' बातिल का ठिकाना नार-ए-सक़र मैं दर-दर घर-घर दावत का परचम ये उठाए फिरता हूँ