तौफ़-ए-हरम न देर की गहराइयों में है जो लुत्फ़ उन के दर की जबीं-साइयों में है हैरत निगाह-ए-शौक़ की पस्पाइयों में है जल्वा ब-ज़ात-ए-ख़ुद ही तमाशाइयों में है ज़ाहिर ये कर रही हैं शब-ए-ग़म की नुज़हतें कोई छुपा हुआ मिरी तन्हाइयों में है दुनिया-ए-रंग-ओ-बू से गुज़र कर पता चला पोशीदा कोई रूह की गहराइयों में है पाता हूँ उन को हर नफ़स-ए-इज़्तिराब में मौज-ए-सकूँ भी दूर की अंगड़ाइयों में है मेरा जुनून-ए-शौक़ ही क्यूँ हो क़ुसूर-वार शामिल तिरी निगाह भी रुस्वाइयों में है ऐ शम-ए-पुर-ग़ुरूर ज़रा ग़ौर से तू देख ये किस की रौशनी तिरी परछाइयों में है इस के लिए 'शकील' ख़िज़ाँ क्या बहार क्या डूबा हुआ जो हुस्न की रानाइयों में है