उस की जब बज़्म से हम हो के ब-तंग आते हैं अपने साथ आप ही करते हुए जंग आते हैं हुस्न में जब तईं गर्मी न हो जी देवे कौन शम्-ए-तस्वीर के कब गिर्द पतंग आते हैं दिल को किस बू-क़लमूँ जल्वे ने है ख़ून किया अश्क आँखों से जो ये रंग-ब-रंग आते हैं आह ताज़ीम को उठती है मिरे सीने से दिल पे जब उस की निगाहों के ख़दंग आते हैं शर्त गर पूछो तो है इस में भी क़िस्मत वर्ना आशिक़ी करने के हर एक को ढंग आते हैं नख़्ल-ए-वहशत भी मगर उन का समर रखता है हर तरफ़ से जो ये दीवारों पे संग आते हैं हैरत-अफ़ज़ा है अजब कूचा-ए-दिलदार 'हसन' जो वहाँ जाते हैं इस तर्फ़ से दंग आते हैं