तौर अपना है अलग ईं से अलग आँ से अलग गो किसी तौर नहीं हिकमत-ए-यज़्दाँ से अलग ज़ीस्त इक और भी है क़ैद-ए-रग-ए-जाँ से अलग सुब्ह-ए-ताबाँ से जुदा शाम-ए-ग़रीबाँ से अलग ज़ुल्मत-ए-शब की तरह नूर-ए-शबिस्ताँ से अलग ग़म-ए-दौराँ से अलग इश्क़-ए-निगाराँ से अलग गर तिरे वास्ते दिल धड़के तो ज़िंदा तू है दिल की आवाज़ है आवाज़-परेशाँ से अलग जब कभी फ़िक्र मिरा रम्ज़-ए-अना से उलझा आलम इक और बना आलम-ए-इम्काँ से अलग उम्र यूँ हम ने गुज़ारी है ज़माने में 'जमील' न रम-ए-ज़ीस्त में शामिल न ग़म-ए-जाँ से अलग