तौसन-ए-वक़्त की रफ़्तार बढ़ा दी जाए मुद्दत-ए-हिज्र किसी तौर घटा दी जाए उन से मिलने पे है क़दग़न मगर इतना तो हो रोज़ उन की नई तस्वीर दिखा दी जाए कोई सरहद न हो वीज़े की ज़रूरत न रहे काश दुनिया मिरे ख़्वाबों सी बना दी जाए शायद इस तरह जुदाई की अज़िय्यत कम हो अर्सा-ए-वस्ल की हर याद मिटा दी जाए लम्हा-भर फ़स्ल भी ख़तरा है त'अल्लुक़ के लिए जूँही दीवार उठे घर में गिरा दी जाए इसी दुनिया में उठाई है सऊबत 'काशिफ़' इसी दुनिया में मोहब्बत की जज़ा दी जाए