यारो तुम्हें ख़बर नहीं कितना बुरा हूँ मैं कमज़ोरियों को अपनी फ़क़त जानता हूँ मैं मुझ को कभी गुनाह का मौक़ा नहीं मिला ऐसा भी अब नहीं कि बड़ा पारसा हूँ मैं अपना ही अक्स देखती है मुझ में तेरी आँख ऐ ख़ुश-गुमान दोस्त कहाँ बा-सफ़ा हूँ मैं पल-भर भी उस पे दिल मिरा ग़ालिब नहीं हुआ कब से अना के साथ नबर्द-आज़मा हूँ मैं लोगों से मेरा फ़ासला कुछ और बढ़ गया शोहरत के साथ और भी तन्हा हुआ हूँ मैं हर लहज़ा मुझ से कहता है अंदर का मोहतसिब मतलब-परस्त अहद-शिकन बेवफ़ा हूँ मैं रौशन किया था दिल में कभी आरज़ू का दीप 'काशिफ़' उसी की आग में अब जल रहा हूँ मैं