तावील-ए-अह्द-ए-फ़न ही तो वहशत का हल नहीं पेश-ए-नज़र जुनून है यारो ग़ज़ल नहीं अब इस के बाद अह्द की तारीक रात है ये इख़्तिताम-ए-शाम है सुब्ह-ए-अज़ल नहीं ऐ दोस्त इश्क़ मंसब-ए-फ़हम-ओ-शुऊ'र है ये इर्तिक़ा है ज़ह्न का कोई ख़लल नहीं इक उम्र रतजगों की अज़िय्यत में काट दी अब मेरे ख़्वाब नींद का रद्द-ए-अमल नहीं क्या क्या अता-ए-ने'मत-ए-रब्ब-ए-करीम है लेकिन 'समीर' दर्द का नेमुल-बदल नहीं