तय ही कब हम ने किया था कि भुलाना होगा तुम ने बस इतना कहा था मुझे जाना होगा दिल को लगता है अभी कल का ही क़िस्सा है ये लोग कहते हैं कोई पिछ्ला ज़माना होगा अब भी उन गलियों से ख़ुशबू तिरी आती होगी अब भी उस घर में तिरा लम्स तवाना होगा जी रहा हूँ हक़ीक़त में मगर जानता हूँ हासिल-ए-ज़िंदगी सिर्फ़ एक फ़साना होगा मैं तो उस रोज़ ग़म-ए-हिज्र मनाऊँगा 'ज़की' जब मिरे ज़ह्न से वो शख़्स रवाना होगा