तय्यार बहुत मौज रवानी के लिए है लेकिन कोई मुश्किल कहीं पानी के लिए है लोगों ने अगर मुझ पे यहाँ तंग ज़मीं की इक और जगह नक़्ल-ए-मकानी के लिए है इस बाब-ए-जहाँ में ये तिरा हर्फ़-ए-शब-ओ-रोज़ मोहताज बहुत अपने मआनी के लिए है जिस शहर का इफ़रात-ए-मोहब्बत में था शोहरा मशहूर अब उस शय की गिरानी के लिए है सुनते हुए सोने पे जो आएगा ज़माना इक मोड़ मिरे पास कहानी के लिए है जलते हुए देखा है कहीं शम-ए-हवा को काफ़ी ये मुझे उस की निशानी के लिए है जाना है कहाँ उस ने किसी शाख़ से झड़ कर आवारगी ही बर्ग-ए-ख़िज़ानी के लिए है बेगार बना डाला है इक याद को तू ने ये काम किसी शाम सुहानी के लिए है ये खोज जो हर दर पे लिए फिरती है 'शाहीं' इक घर में किसी शक्ल पुरानी के लिए है