तज़्किरा छेड़ दिया आप ने क्यों जाने का घर में नक़्शा नज़र आने लगा वीराने का जुर्म-ए-उल्फ़त नहीं इज़्हार-ए-तमन्ना लेकिन हाथ फैलाना भी शेवा नहीं दीवाने का ज़ुल्म के बा'द हुआ सब्र का दर्जा रौशन ग़म किया शम्अ' ने किस हुस्न से परवाने का दश्त-गर्दी में गरेबाँ के उड़ाए पुर्ज़े पाँव के साथ चला हाथ भी दीवाने का अब समझ-बूझ के इस दौर में पीना ऐ 'जुर्म' रंग अच्छा नज़र आता नहीं मयख़ाने का