वफ़ा से पशेमाँ जफ़ा हो रही है मोहब्बत की क़ीमत अदा हो रही है दवा हो रही है दुआ हो रही है मगर दिल की उलझन सिवा हो रही है डुबोई है जिस ने अभी दिल की कश्ती वही आस फिर नाख़ुदा हो रही है गुलों में भी है रंग बेगानगी का अजब इस चमन की हवा हो रही है निगाहों से पर्दे हटे जा रहे हैं ख़ुदी की ख़ुदाई फ़ना हो रही है तलब पर भी हुस्न-ए-तलब की है कोशिश नज़र कुछ मिज़ाज-आश्ना हो रही है मिरे दर्द की इब्तिदा करने वाले तिरे ज़ुल्म की इंतिहा हो रही है तिरी राह में मिटने वालों की क़िस्मत फ़ना को भी हासिल बक़ा हो रही है सितम को सितम 'जुर्म' हरगिज़ न कहते अगर ये समझते ख़ता हो रही है