तज़्किरा उन का ही जो रंग बदल जाते हैं बात सायों की नहीं साए तो ढल जाते हैं आप ज़हमत न करें पुर्सिश-ए-हाल-ए-दिल की मुँह से नाग़ुफ़्तनी जुमले भी निकल जाते हैं इतना ख़ुश-फ़हम न हो ऐ दिल-ए-पज़-मुर्दा कि अब वो शगूफ़े जो न खिल पाएँ कुचल जाते हैं कुछ दिए ख़ून रग-ए-जाँ से हुए हैं रौशन कुछ दिए तुंदी-ए-सहबा से भी जल जाते हैं