तेज़ जब गर्दिश-ए-हालात हुआ करती है रौशनी दिन की सियह रात हुआ करती है रंज और ग़म की जो बरसात हुआ करती है दौलत-ए-इश्क़ की ख़ैरात हुआ करती है जब ख़यालों में दबे पाँव वो आ जाता है वो मुलाक़ात मुलाक़ात हुआ करती है उस की ख़ामोशी भी तूफ़ाँ का पता देती है उस की हर बात में इक बात हुआ करती है जिस पे रिश्तों के निभाने की हो ज़िम्मेदारी उस के हिस्से में फ़क़त मात हुआ करती है ये भी होता है मोहब्बत में सुख़न का अंदाज़ लब नहीं खुलते मगर बात हुआ करती है जलता रहता है चराग़ों में रिफ़ाक़त का लहू हिज्र की रात भी क्या रात हुआ करती है दिन की बेचैनियाँ रातों की तड़प बे-ख़्वाबी उस की चाहत की ये सौग़ात हुआ करती है