तीर की परवाज़ है मश्कीज़ा-ए-दिल की तरफ़ हो के घायल फिर भी हम माइल हैं क़ातिल की तरफ़ गो नहीं पैराक लेकिन हौसला बढ़ने का है मौज की इक फ़ौज सफ़-बस्ता है साहिल की तरफ़ हर जगह हाज़िर हूँ मैं अपने मिसाली तन के साथ फ़ासले और वक़्त बे-मा'नी हैं मंज़िल की तरफ़ जैसी अपनी ऐन है उतनी ही अपनी दौड़-धूप क़ैस महमिल की तरफ़ हम शम-ए-महफ़िल की तरफ़ सौत-ए-नाक़ूस-ओ-जरस हो या अज़ाँ हो या जरस रास्ता इक और जाता है सलासिल की तरफ़ जैसे बे-हर्फ़-ओ-नवा उतरी है इल्हामी किताब वो मुख़ातब हैं उसी अंदाज़ से दिल की तरफ़ बादा-ख़्वारों में भी हम 'काविश' वली बन कर जिए रुख़ हमारा था तसव्वुफ़ के मसाइल की तरफ़