तिरा क़ुसूर नहीं दोस्त बेवफ़ा होना मिरे नसीब में लिक्खा था ग़म-ज़दा होना अजब नहीं है कहीं कोई हादिसा होना ज़माना चाहता है कुछ न कुछ नया होना तिरी ख़मोशी भी मुझ को अज़ीज़ है लेकिन तू देख मेरी मोहब्बत की इंतिहा होना वो चाहता ही नहीं बेवफ़ा ज़माने में मेरे लबों पे किसी तौर इल्तिजा होना धड़क रहा है मिरे दिल में वो हमेशा से उसे क़ुबूल नहीं मेरा देवता होना चराग़-ए-इश्क़ बुझा है न बुझ सकेगा कभी ज़माने देख हवा का तेरी हवा होना ये फ़ासले की अलामत है दरमियाँ अपने जो बात बात पे हो जाए फ़ैसला होना नज़र नज़र पे लगे हैं फ़रेब के पर्दे बहुत ज़रूरी है चेहरे का आइना होना बदलते दौर में अब तो बहुत ही मुश्किल है 'ज़हीन' दिल का किसी दिल से आश्ना होना