सुकून-ए-क़ल्ब है धड़कन की इंतिहा है ग़ज़ल वक़ार-ए-ज़ीस्त है साँसों का सिलसिला है ग़ज़ल कली की नाज़ुकी फूलों की हर अदा है ग़ज़ल दुल्हन की शर्म-ओ-हया सुर्ख़ी-ए-हिना है ग़ज़ल ज़माने भर की तो हर शय से आश्ना है ग़ज़ल तमाम लफ़्ज़ तिरे दिल का आइना है ग़ज़ल कभी मचलते लबों की सी नाज़ुकी तो कभी दहकती रेत पे ठहरी हुई नवा है ग़ज़ल नई हयात के पहलू को दस्तकें देती लिबास-ए-रूह में उतरी हुई सदा है ग़ज़ल अँधेरी रात में उम्मीद की किरन जैसी किसी ग़रीब की ख़ुशियों की इब्तिदा है ग़ज़ल निगार-ए-हुस्न है ये हुस्न-ए-काएनात भी है इसी लिए तो हमेशा से ख़ुशनुमा है ग़ज़ल दुपट्टा खींच लिया उस का जिस ने जब चाहा सुख़न की लाज है फिर भी तो बे-रिदा है ग़ज़ल 'ज़हीन' इस का असर बे-असर नहीं होता किसी फ़क़ीर की माँगी हुई दुआ है ग़ज़ल