तेरे आलम का यार क्या कहना हर तरफ़ है पुकार क्या कहना उफ़ न की दर्द-ए-हिज्र ज़ब्त किया ऐ दिल-ए-बे-क़रार क्या कहना वादा-ए-वस्ल उन से लूँ क्यूँ-कर मेरा क्या इख़्तियार क्या कहना क्या ही नैरंगियाँ दिखाई हैं मेरे बाग़-ओ-बहार क्या कहना कैसे आशिक़ हैं उन से जब पूछा बोले बे-इख़्तियार क्या कहना मुश्त पर भी गुलों के गर्द रहे आफ़रीं ऐ हज़ार क्या कहना तिरछी नज़रें छुरी कटारी हैं चश्म-ए-बद-दूर यार क्या कहना गुलशनों में ये रंग-रूप कहा ला-जवाब ऐ निगार क्या कहना दम-ए-ईसा को मात करती है ऐ नसीम-ए-बहार क्या कहना इम्तिहाँ कर चुके तो वो बोले ऐ मिरे जाँ-निसार क्या कहना उस के कूचे में बैठ कर न उठा वाह मेरे ग़ुबार क्या कहना जानते हैं कि जान दोगे 'शरफ़' उस को फिर बार बार क्या कहना