कुछ इस तरह से तसव्वुर में आ रहा है कोई चराग़ रूह में जैसे जला रहा है कोई कोई कलीम उठे वर्ना इंतिज़ार के बा'द चराग़-ए-तूर-ए-मोहब्बत बुझा रहा है कोई वो दैर का था कि का'बे का ये नहीं मा'लूम मिरी ख़ुदी का मुहाफ़िज़ ख़ुदा रहा है कोई जो रोकना हो तो आ बढ़ के रोक ले वर्ना तिरे हदूद-ए-तग़ाफ़ुल से जा रहा है कोई रवाँ-दवाँ नहीं बे-वज्ह कारवान-ए-हयात मुझे ज़रूर कहीं से बुला रहा है कोई बदल रहे हैं जुनून-ओ-ख़िरद के पैमाने किस एहतिमाम-ए-तग़य्युर से आ रहा है कोई न कुछ मलाल-ए-असीरी न ख़तरा-ए-सय्याद क़फ़स समझ के नशेमन बना रहा है कोई ज़मीन-ओ-चर्ख़ ने इंकार कर दिया जिस से वो बार दोश-ए-वफ़ा पर उठा रहा है कोई जहान-ए-नौ में ब-रंग-ए-कशाकश-ए-पैहम हयात-ए-नौ के सलीक़े सिखा रहा है कोई ख़बर करो ये हक़ाएक़ के पासबानों को मजाज़ खो के हक़ीक़त में आ रहा है कोई न जाने कौन सी मंज़िल में इश्क़ है कि मुझे मिरे हुदूद से बाहर बुला रहा है कोई डरो ख़ुदा से बड़ा बोल बोलने वालो क़रीब हम से भी बे-इंतिहा रहा है कोई मुझे सितम में इज़ाफ़े का ग़म नहीं लेकिन यक़ीन कर कि मिरे बा'द आ रहा है कोई निगाह-ओ-लब में हँसी की सकत नहीं लेकिन ब-जब्र-ए-इश्क़-ओ-वफ़ा मुस्कुरा रहा है कोई ये सुब्ह-ओ-शाम की यूरिश ये मौसमों की रविश कि जैसे मेरे तआ'क़ुब में आ रहा है कोई किसी को इस की ख़बर ही नहीं थी कुछ 'एहसान' कि मिट के अपना ज़माना बना रहा है कोई